Monday, April 7, 2008

यूं ही नहीं .....................


कभी अंधेरे में बनता था मशाल , अब अंधेरे में ओज़ल हो जाता हूँ ,
कभी उसे सोच बनाता था प्यारी ग़ज़ल , अब याद आते ही उसकी बोज़ल बन जाता हूँ ,
मुजे पागल मत समजना मेरे यारों ,

राह चलते यूहीं नहीं में अश्क बहाता हूँ । ( 1 )

प्यार के राही को राह दिखाने वाला , आज ख़ुद बिना मंजिल की राह बन गया हूँ ,
जो कभी पत्थर में भी ढूनढता था दिल , आज ख़ुद एक पत्थर दिल बन गया हूँ ,
मुजे ज़िंदा लाश न समजना मेरे यारों ,
बोलते जो थकता नहीं था, में यूहीं नहीं सन्नाटा बन गया हूँ। ( 2 )


उड़ता हुआ बिंदास बादल था कभी , बिछड़ के उस चाँद से तनहा चकोर बन गया हूँ,
जिंदगी को कई हसीं नाम देने वाला , में अपने आप से गुमनाम हो गया हूँ,
मुजे पागल बेतुका शायर न समजना यारों,
प्यार भरे नगमे बनाने वाला , मैं यूहीं नहीं दर्द - ऐ- ग़ज़ल लिख रहा हूँ । ( 3 )
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बस अब तो ज़मीन से आसमा को मिलाने की ख्वाहिश रखने वाला ,
यारों इस ज़मीन में सिमट जाने की ख्वाहिश रखता हूँ।